श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.52.4 
बदर्याश्रममासाद्य नरनारायणालयम् ।
सर्वद्वन्द्वसह: शान्तस्तपसाराधयद्धरिम् ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
बदरी-आश्रमम्—बदरिकाश्रम में; आसाद्य—पहुँच कर; नर-नारायण—नर तथा नारायण नामक भगवान् के दो अवतारों का; आलयम्—आवास; सर्व—समस्त; द्वन्द्व—द्वैतताओं को; सह:—सहते हुए; शान्त:—शान्त; तपसा—कठिन तपस्या से; आराधयत्—पूजा; हरिम्—भगवान् को ।.
 
अनुवाद
 
 वहाँ वह नर-नारायण के धाम बदरिकाश्रम आया जहाँ पर समस्त द्वन्द्वों को सहते हुए उसने कठोर तपस्या करके भगवान् हरि की शान्तिपूर्वक पूजा की।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥