अन्त:-पुर—महल में स्त्रियों के कक्ष, रनिवास के; अन्तर—भीतर; चरीम्—घूमने वाले; अनिहत्य—बिना मारे; बन्धून्—तुम्हारे सम्बन्धियों को; त्वाम्—तुमको; उद्वहे—मैं ले जाऊँगा; कथम्—कैसे; इति—ऐसे शब्द कहते हुए; प्रवदामि—मैं बतलाऊँगी; उपायम्—उपाय; पूर्वे-द्यु:—एक दिन पहले; अस्ति—है; महती—विशाल; कुल—राजपरिवार के; देव—कुलदेवता के लिए; यात्रा—जुलूस; यस्याम्—जिसमें; बहि:—बाहर; नव—नवीन; वधू:—दुलहन; गिरिजाम्—देवी गिरिजा (अम्बिका) के पास; उपेयात्—जाती है ।.
अनुवाद
चूँकि मैं रनिवास के भीतर रहूँगी अत: आप आश्चर्य करेंगे और सोचेंगे कि “मैं तुम्हारे कुछ सम्बन्धियों को मारे बिना तुम्हें कैसे ले जा सकता हूँ?” किन्तु मैं आपको एक विधि बतलाऊँगी: विवाह के एक दिन पूर्व राजकुल के देवता के सम्मान में एक विशाल जुलूस निकलेगा जिसमें दुलहन नगर के बाहर देवी गिरिजा का दर्शन करने जाती है।
तात्पर्य
चतुर रुक्मिणी ने पहले से श्रीकृष्ण द्वारा उठाई जाने वाली आपत्ति भाँप ली थी। वे निश्चित रूप से शिशुपाल तथा जरासन्ध जैसे धूर्तों का दमन करने का विरोध नहीं करेंगे किन्तु वे नहीं चाहेंगे कि अन्त:पुर में उनका मार्ग रोकने वाले रुक्मिणी के सम्बन्धियों को क्षति पहुँचाई जाय या उनका वध किया जाय। गिरिजादेवी (दुर्गा) तक जाने तथा लौटने वाले जुलूस से कृष्ण को पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा कि रुक्मिणी के सम्बन्धियों को बिना क्षति पहुँचाये रुक्मिणी का हरण कर लें।
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