श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 52: भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  10.52.44 
ब्राह्मण उवाच
इत्येते गुह्यसन्देशा यदुदेव मयाहृता: ।
विमृश्य कर्तुं यच्चात्र क्रियतां तदनन्तरम् ॥ ४४ ॥
 
शब्दार्थ
ब्राह्मण: उवाच—ब्राह्मण ने कहा; इति—इस प्रकार; एते—ये; गुह्य—गुप्त; सन्देशा:—सन्देश; यदु-देव—हे यदुओं के स्वामी; मया—मेरे द्वारा; आहृता:—लाये गये; विमृश्य—विचार करके; कर्तुम्—करणीय; यत्—जो; च—तथा; अत्र—इस बारे में; क्रियताम्—करें; तत्—वह; अनन्तरम्—इसके तुरन्त बाद ।.
 
अनुवाद
 
 ब्राह्मण ने कहा, हे यदु-देव, मैं यह गोपनीय संदेश अपने साथ लाया हूँ। कृपया सोचें- विचारें कि इन परिस्थितियों में क्या किया जाना चाहिये और उसे तुरन्त ही कीजिये।
 
तात्पर्य
 जब ब्राह्मण आया तो उसने रुक्मिणी द्वारा अपने अन्त:पुर में केवल कृष्ण के निमित्त एकांत में लिखे गये गोपनीय पत्र की सील तोड़ी। रुक्मिणी द्वारा स्वयं चुने गये विश्वासपात्र ब्राह्मण ने गुह्य सन्देशा: शब्द का प्रयोग करते हुए यह पुष्टि की है कि उसने सन्देश की गोपनीयता का अतिक्रमण नहीं किया है। केवल भगवान् कृष्ण ने ही उसे सुना। चूँकि रुक्मिणी का विवाह निकट था इसलिए कृष्ण को तुरन्त कार्यवाही करनी थी। यदु-देव शब्द सूचित करता है कि प्रबल यदुवंश के स्वामी के रूप में कृष्ण को निर्णय लेना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो वे अपने अनुयायियों को साथ ले लेना चाहिए।
 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के अन्तर्गत “भगवान् कृष्ण के लिए रुक्मिणी-संदेश” नामक बावनवें अध्याय के श्रील प्रभुपाद के विनीत सेवकों द्वारा रचित भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥