चक्रु:—किया; साम-ऋग्-यजु:—साम, ऋग तथा यजुर्वेदों के; मन्त्रै:—मंत्रों से; वध्वा:—दुलहन या वधू की; रक्षाम्—रक्षा; द्विज-उत्तम:—उत्तम ब्राह्मण; पुरोहित:—पुरोहित; अथर्व-वित्—अथर्ववेद के मंत्रों में पटु; वै—निस्सन्देह; जुहाव—घी की आहुति डाली; ग्रह—नियन्ता ग्रहों को; शान्तये—शान्त करने के लिए ।.
अनुवाद
उत्तमोत्तम ब्राह्मणजनों ने वधू की रक्षा के लिए ऋग्, साम तथा यजुर्वेदों के मंत्रों का उच्चारण किया और अथर्ववेद में पटु पुरोहित ने नियन्ता ग्रहों को शान्त करने के लिए आहुतियाँ दीं।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती इंगित करते हैं कि अथर्ववेद
प्राय: प्रतिकूल ग्रहों की शान्ति से सम्बन्धित है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥