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श्लोक |
हिरण्यरूप्यवासांसि तिलांश्च गुडमिश्रितान् ।
प्रादाद् धेनूश्च विप्रेभ्यो राजा विधिविदां वर: ॥ १३ ॥ |
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शब्दार्थ |
हिरण्य—सोना; रूप्य—चाँदी; वासांसि—तथा वस्त्र; तिलान्—तिल; च—तथा; गुड—गुड़; मिश्रितान्—से मिश्रित; प्रादात्—दिया; धेनू:—गौवें; च—भी; विप्रेभ्य:—ब्राह्मणों को; राजा—राजा भीष्मक ने; विधि—विधि-विधान; विदाम्— जानने वालों में; वर:—श्रेष्ठ ।. |
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अनुवाद |
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राजा ने विधि-विधानों के ज्ञान में दक्ष व अद्वितीय ब्राह्मणों को सोना, चाँदी, वस्त्र, गौवें तथा गुड़-मिश्रित तिलों की दक्षिणा दी। |
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