श्रीभगवानुवाच
तथाहमपि तच्चित्तो निद्रां च न लभे निशि ।
वेदाहं रुक्मिणा द्वेषान्ममोद्वाहो निवारित: ॥ २ ॥
शब्दार्थ
श्री-भगवान् उवाच—भगवान् ने कहा; तथा—इसी तरह से; अहम्—मैं; अपि—भी; तत्—उस पर स्थिर किये; चित्त:—अपने मन को; निद्राम्—नींद; च—तथा; न लभे—नहीं पाता; निशि—रात में; वेद—जानता हूँ; अहम्—मैं; रुक्मिणा—रुक्मी द्वारा; द्वेषात्—शत्रुतावश; मम—मेरी; उद्वाह:—विवाह; निवारित:—रोका गया ।.
अनुवाद
भगवान् ने कहा : जिस तरह रुक्मिणी का मन मुझ पर लगा है उसी तरह मेरा मन उस पर लगा है। मैं रात में सो तक नहीं सकता। मैं जानता हूँ कि द्वेषवश रुक्मी ने हमारा विवाह रोक दिया है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥