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श्लोक |
सा तं प्रहृष्टवदनमव्यग्रात्मगतिं सती ।
आलक्ष्य लक्षणाभिज्ञा समपृच्छच्छुचिस्मिता ॥ २९ ॥ |
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शब्दार्थ |
स—वह; तम्—उसको; प्रहृष्ट—प्रसन्न; वदनम्—मुख वाला; अव्यग्र—व्यग्रतारहित; आत्म—जिसके शरीर की; गतिम्—चाल; सती—साध्वी तरुणी; आलक्ष्य—देखकर; लक्षण—लक्षणों की; अभिज्ञा—जानने वाली; समपृच्छत्—पूछा; शुचि—शुद्ध; स्मिता—मुसकान सहित ।. |
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अनुवाद |
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ब्राह्मण के प्रसन्न मुख तथा शान्त चाल को देखकर ऐसे लक्षणों की दक्ष-व्याख्या करने वाली साध्वी रुक्मिणी ने शुद्ध मन्द-हास के साथ उससे पूछा। |
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