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श्लोक |
तमागतं समाज्ञाय वैदर्भी हृष्टमानसा ।
न पश्यन्ती ब्राह्मणाय प्रियमन्यन्ननाम सा ॥ ३१ ॥ |
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शब्दार्थ |
तम्—उसको, कृष्ण को; आगतम्—आया हुआ; समाज्ञाय—अच्छी तरह समझकर; वैदर्भी—रुक्मिणी; हृष्ट—प्रफुल्लित; मानसा—मन वाली; न पश्यन्ती—न देखती हुई; ब्राह्मणाय—ब्राह्मण को; प्रियम्—प्रिय; अन्यत्—कुछ और; ननाम—नमस्कार किया; सा—उसने ।. |
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अनुवाद |
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राजकुमारी वैदर्भी कृष्ण का आगमन सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुई। पास में देने योग्य कोई उपयुक्त वस्तु न पाकर उसने ब्राह्मण को केवल नमस्कार किया। |
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