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श्लोक |
स चाश्वै: शैब्यसुग्रीवमेघपुष्पबलाहकै: ।
युक्तं रथमुपानीय तस्थौ प्राञ्जलिरग्रत: ॥ ५ ॥ |
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शब्दार्थ |
स:—वह, दारुक; च—तथा; अश्वै:—घोड़ों से; शैब्य-सुग्रीव-मेघपुष्प-बलाहकै:—शैब्य, सुग्रीव, मेघपुष्प तथा बलाहक नामक; युक्तम्—जोता; रथम्—रथ को; उपानीय—लाकर; तस्थौ—खड़ा हुआ; प्राञ्जलि:—आदरपूर्वक हाथ जोड़ कर; अग्रत:—सामने ।. |
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अनुवाद |
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दारुक भगवान् का रथ ले आया जिसमें शैब्य, सुग्रीव, मेघपुष्प तथा बलाहक नामक घोड़े जुते थे। फिर वह अपने हाथ जोड़ कर भगवान् कृष्ण के सामने खड़ा हो गया। |
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तात्पर्य |
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती पद्म पुराण से उद्धरण देते हैं जिसमें भगवान् कृष्ण के रथ के घोड़ों का वर्णन हुआ है— |
शैब्यस्तु शुकपत्राभ: सुग्रीवो हेमपिंगल:। मेघपुष्पस्तु मेघाभ: पाण्डुरो च बलाहक: ॥ “शैब्य तोते के पंखों जैसे रंग वाला था, सुग्रीव पीला सुनहरा था, मेघपुष्प बादल के रंग का और बलाहक कुछ कुछ सफेद रंग का था।” |
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