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श्लोक |
मुनिव्रतमथ त्यक्त्वा निश्चक्रामाम्बिकागृहात् ।
प्रगृह्य पाणिना भृत्यां रत्नमुद्रोपशोभिना ॥ ५० ॥ |
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शब्दार्थ |
मुनि—मौन; व्रतम्—व्रत; अथ—तब; त्यक्त्वा—त्याग कर; निश्चक्राम—बाहर आई; अम्बिका-गृहात्—अम्बिका मन्दिर से; प्रगृह्य—पकडक़र; पाणिना—हाथ से; भृत्याम्—दासी को; रत्न—रत्नजटित; मुद्रा—अँगूठी से; उपशोभिना—शोभित ।. |
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अनुवाद |
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तब राजकुमारी ने अपना मौन-व्रत तोड़ दिया और वह रत्नजटित अँगूठी से सुशोभित अपने हाथ से एक दासी को पकड़ कर अम्बिका मन्दिर के बाहर आई। |
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