श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ने श्यामा प्रकार की स्त्री का वर्णन करने के लिए निम्नलिखित उद्धरण दिया है— शीतकाले भवेद् उष्णो उष्णकाले तु शीतला। स्तनौ सुकठिनौ यस्या: सा श्यामा परिकीर्तिता ॥ “वह स्त्री श्यामा कहलाती है, जिसके स्तन अत्यन्त कठोर होते हैं और उसके सामने आने वाला व्यक्ति जाड़े में अपने को गर्म तथा गर्मी में अपने को शीतल अनुभव करता है।” श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती यह भी इंगित करते हैं कि चूँकि रुक्मिणी का सुन्दर रूप भगवान् की अन्तरंगा शक्ति का प्राकट्य है, अत: अभक्तगण उसकी ओर नहीं देख सकते। इस तरह विदर्भ में एकत्र बलवान राजा भगवान् की माया शक्ति या रुक्मिणी के अंश को देखकर कामुक हो उठे थे। दूसरे शब्दों में, भगवान् की नित्य संगिनी को देखकर कोई काम-मोहित नहीं हो सकता क्योंकि काम से कलुषित होते ही मन को माया का आवरण आध्यात्मिक जगत तथा उसके निवासियों के आद्य सौन्दर्य से विलग कर देता है। अन्त में, श्रीमती रुक्मिणी देवी अन्य राजाओं को तिरछी नजर से देखकर लजा सी गईं क्योंकि वे उन निकृष्टजनों की नजरों से अपनी नजरें नहीं मिलाना चाहती थीं। |