|
श्लोक |
आरुह्य स्यन्दनं शौरिर्द्विजमारोप्य तूर्णगै: ।
आनर्तादेकरात्रेण विदर्भानगमद्धयै: ॥ ६ ॥ |
|
शब्दार्थ |
आरुह्य—चढ़ कर; स्यन्दनम्—अपने रथ में; शौरि:—कृष्ण; द्विजम्—ब्राह्मण को; आरोप्य—बैठाकर; तूर्ण-गै:—तेज; आनर्तात्—आनर्त जिले से; एक—एकही; रात्रेण—रात में; विदर्भान्—विदर्भ राज्य तक; अगमत्—गये; हयै:—अपने घोड़ों से ।. |
|
अनुवाद |
|
भगवान् शौरि अपने रथ में सवार हुए और फिर ब्राह्मण को चढ़ाया। तत्पश्चात् भगवान् के तेज घोड़े एक रात में ही उन्हें आनर्त जिले से विदर्भ ले गये। |
|
|
____________________________ |