|
श्लोक |
राजा स कुण्डिनपति: पुत्रस्नेहवशानुग: ।
शिशुपालाय स्वां कन्यां दास्यन् कर्माण्यकारयत् ॥ ७ ॥ |
|
शब्दार्थ |
राजा—राजा; स:—वह, भीष्मक; कुण्डिन-पति:—कुण्डिन का स्वामी; पुत्र—अपने पुत्र के; स्नेह—स्नेह के; वश—वशीभूत; अनुग:—आज्ञापालन करते हुए; शिशुपालाय—शिशुपाल को; स्वाम्—अपनी; कन्याम्—पुत्री; दास्यन्—देने ही वाला; कर्माणि—आवश्यक कार्य; अकारयत्—कर चुका था ।. |
|
अनुवाद |
|
कुण्डिन का स्वामी राजा भीष्मक अपने पुत्र के स्नेह के वशीभूत होकर अपनी कन्या शिशुपाल को देने ही वाला था। राजा ने समस्त आवश्यक तैयारियाँ पूरी कर ली थीं। |
|
तात्पर्य |
इस सन्दर्भ में श्रील श्रीधर स्वामी इंगित करते हैं कि राजा भीष्मक को शिशुपाल से कोई |
विशेष लगाव न था प्रत्युत वह अपने पुत्र रुक्मी के प्रति अनुरागवश ऐसा कर रहा था। |
|
____________________________ |