जैसाकि श्रील श्रीधर गोस्वामी की व्याख्या है, यहाँ पर यथा शब्द सूचित करता है कि हर विवाह उचित रीति से सम्पन्न हुआ। इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान् के सारे सम्बन्धी, जिनमें उनकी माता देवकी भी सम्मिलित थीं, प्रत्येक महल में प्रकट हुए और हर विवाह में सम्मिलित हुए। चूँकि ये सारे विवाह एक ही समय सम्पन्न हुए, अत: यह घटना निश्चित रूप से भगवान् की अचिन्त्य शक्ति का प्राकट्य था। जब भगवान् कृष्ण कोई कार्य करते हैं, तो वे उसे अपने ढंग से करते हैं। अत: यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि भगवान् एक ही समय १६ १०० राजमहलों में सम्पन्न हो रहे १६ १०० विवाहोत्सवों में प्रत्येक महल में अपने सारे सम्बन्धियों सहित प्रकट हुए। निस्सन्देह, भगवान् से ऐसी ही आशा की जाती है। आखिर, वे कोई सामान्य पुरुष तो हैं नहीं।
श्रील श्रीधर स्वामी यह भी कहते हैं कि इस विशेष अवसर पर भगवान् ने अपने हर महल में अपना आदि-रूप प्रकट किया। दूसरे शब्दों में, विवाह-प्रतिज्ञा में भाग लेने के लिए उन्होंने सारे महलों में एक से रूप (प्रकाश) प्रकट किये।