सा—वह (पूतना); मुञ्च—छोड़ो; मुञ्च—छोड़ो; अलम्—बस! बस!; इति—इस प्रकार; प्रभाषिणी—चिल्लाती; निष्पीड्यमाना—बुरी तरह दबाई जाकर; अखिल-जीव-मर्मणि—सारे मर्मस्थलों में; विवृत्य—खोल कर; नेत्रे—दोनों आँखें; चरणौ—दोनों पाँव; भुजौ—दोनों हाथ; मुहु:—पुन: पुन:; प्रस्विन्न-गात्रा—पसीने से तर शरीर; क्षिपती—फेंकते हुए; रुरोद— जोर से चिल्लाई; ह—निस्सन्देह ।.
अनुवाद
प्रत्येक मर्मस्थल में असह्य दबाव से पूतना चिल्ला उठी, “मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो! अब मेरा स्तनपान मत करो।” पसीने से तर, फटी हुई आँखें तथा हाथ और पैर पटकती हुई वह बार बार जोर जोर से चिल्लाने लगी।
तात्पर्य
कृष्ण ने इस राक्षसी को बुरी तरह दण्ड दिया। वह हाथ-पैर इधर-उधर पटकने लगी और अपने दुष्कर्मों का दण्ड देने के लिए कृष्ण भी उसे लतियाने लगे।
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