ईषामात्रोग्रदंष्ट्रास्यं गिरिकन्दरनासिकम् ।
गण्डशैलस्तनं रौद्रं प्रकीर्णारुणमूर्धजम् ॥ १५ ॥
अन्धकूपगभीराक्षं पुलिनारोहभीषणम् ।
बद्धसेतुभुजोर्वङ्घ्रि शून्यतोयह्रदोदरम् ॥ १६ ॥
सन्तत्रसु: स्म तद्वीक्ष्य गोपा गोप्य: कलेवरम् ।
पूर्वं तु तन्नि:स्वनितभिन्नहृत्कर्णमस्तका: ॥ १७ ॥
शब्दार्थ
ईषा-मात्र—हल के फाल की तरह; उग्र—भयानक; दंष्ट्र—दाँत; आस्यम्—मुँह के भीतर; गिरि-कन्दर—पर्वत की गुफा के समान; नासिकम्—नाक के छेद; गण्ड-शैल—पत्थर की बड़ी शिला की तरह; स्तनम्—स्तन; रौद्रम्—अत्यन्त विकराल; प्रकीर्ण—बिखरे हुए; अरुण-मूर्ध-जम्—ताम्र रंग के बालों वाली; अन्ध-कूप—भूपट्ट कुओं की तरह; गभीर—गहरे; अक्षम्— आँख के गड्ढे; पुलिन-आरोह-भीषणम्—जिसकी जाँघें नदी के किनारों की तरह भयावनी थीं; बद्ध-सेतु-भुज-उरु-अङ्घ्रि— जिसकी भुजाएँ, जाँघें तथा पैर मजबूत बने पुलों के समान थे; शून्य-तोय-ह्रद-उदरम्—जिसका पेट जलविहीन झील की तरह था; सन्तत्रसु: स्म—डर गये; तत्—उस; वीक्ष्य—देखकर; गोपा:—सारे ग्वाले; गोप्य:—तथा ग्वालिनें; कलेवरम्—ऐसे विशाल शरीर को; पूर्वम् तु—इसके पहले; तत्-नि:स्वनित—उसकी पुकार से; भिन्न—दहले हुए, कटे; हृत्—जिनके हृदय; कर्ण—कान; मस्तका:—तथा सिर ।.
अनुवाद
राक्षसी के मुँह में दाँत हल के फाल (कुशी) जैसे थे; उसके नथुने पर्वत-गुफाओं की तरह गहरे थे और उसके स्तन पर्वत से गिरे हुए बड़े बड़े शिलाखण्डों के समान थे। उसके बिखरे बाल ताम्र रंग के थे। उसकी आँखों के गड्ढे गहरे अंधे (भूपट्ट) कुँओं जैसे थे, उसकी भयानक जाँघें नदी के किनारों जैसी थीं; उसके बाजू, टाँगें तथा पाँव बड़े बड़े पुलों की तरह थीं तथा उसका पेट सूखी झील की तरह लग रहा था। राक्षसी की चीख से ग्वालों तथा उनकी पत्नियों के हृदय, कान तथा सिर पहले ही दहल चुके थे और जब उन्होंने उसके अद्भुत शरीर को देखा तो वे और भी ज्यादा सहम गये।
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