बालक कृष्ण भी निडर होकर पूतना की छाती के ऊपरी भाग पर खेल रहा था और जब गोपियों ने बालक के अद्भुत कार्यकलाप को देखा तो उन्होंने अत्यन्त हर्षित होकर आगे बढ़ते हुए उसे उठा लिया।
तात्पर्य
ये हैं पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् कृष्ण। यद्यपि योगशक्ति से पूतना अपने शरीर को घटा-बढ़ा सकती थी और उसी के अनुसार शक्ति प्राप्त करती थी किन्तु भगवान् चाहे जिस भी रूप में क्यों न हों, समान रूप से शक्तिशाली रहते हैं। कृष्ण असली भगवान् हैं क्योंकि चाहे वे बालक हों या युवक, वे रहते हैं वही पुरुष, उन्हें ध्यान या किसी अन्य बाह्य प्रयास से शक्तिशाली बनने की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए जब बिकट शक्तिशालिनी पूतना ने अपना शरीर बढ़ाया तो कृष्ण वैसे ही नन्हें बालक बने रहे और निडर होकर उसकी छाती के ऊपरी भाग पर खेलते रहे। षडैश्वर्य-पूर्ण। भगवान् चाहे जिस रूप में हों अपनी समस्त शक्तियों से सदैव पूर्ण रहते हैं। उनकी शक्तियाँ सदैव पूर्ण रहती हैं। परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते। वे किसी भी परिस्थिति में अपनी सारी शक्तियों का प्रदर्शन कर सकते हैं।
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