श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 6: पूतना वध  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  10.6.19 
यशोदारोहिणीभ्यां ता: समं बालस्य सर्वत: ।
रक्षां विदधिरे सम्यग्गोपुच्छभ्रमणादिभि: ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
यशोदा-रोहिणीभ्याम्—यशोदा तथा रोहिणी माताओं के साथ जिन्होंने मुख्यत: बालक की चिम्मेदारी ली; ता:—अन्य गोपियाँ; समम्—यशोदा तथा रोहिणी की ही तरह महत्त्वपूर्ण; बालस्य—बालक के; सर्वत:—सारे खतरों से; रक्षाम्—रक्षा; विदधिरे— सम्पन्न किया; सम्यक्—भलीभाँति; गो-पुच्छ-भ्रमण-आदिभि:—चँवर डुला कर ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् माता यशोदा तथा रोहिणी ने अन्य प्रौढ़ गोपियों समेत बालक श्रीकृष्ण की पूर्ण संरक्षण देने के लिए चँवर डुलाया।
 
तात्पर्य
 जब कृष्ण इतने बड़े खतरे से बच गये तो माता यशोदा तथा रोहिणी को मुख्य रूप से चिन्ता हो गई। अन्य वृद्धा गोपियों ने भी जो उन्हीं की तरह व्याकुल थीं, माता यशोदा तथा रोहिणी का अनुकरण किया। यहाँ हम पाते हैं कि घरेलू कार्यों में स्त्रियाँ बालक की रक्षा गाय की सहायता से ही करती थीं। वे जानती थीं कि बच्चे को सभी प्रकार के खतरों से बचाने के लिए किस प्रकार चँवर डुलायी जाती है। गोरक्षा से अनेक सुविधाएँ प्राप्त होती हैं किन्तु लोग इन बातों को भूल चुके हैं। इसीलिए कृष्ण भगवद्गीता में गायों की सुरक्षा पर बल देते हैं (कृषिगोरक्ष्य वाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् )। आज भी वृन्दावन के आसपास के गाँवों के निवासी गाय की रक्षा करके सुखपूर्वक जीवन बिताते हैं। वे गोबर को अच्छे से सँभालकर रखते हैं और सुखा कर ईंधन की तरह उसका प्रयोग करते हैं। उनके पास पर्याप्त अन्न-भण्डार रहता है और गायों की रक्षा करने से उनके पास पर्याप्त दूध तथा दूध से बनने वाले पदार्थ होते हैं जिनसे सारी आर्थिक समस्याएँ हल हो जाती हैं। मात्र गोरक्षा से ग्रामीण लोग बड़ी शान्ति से रहते हैं। यहाँ तक कि गोमूत्र तथा गोबर के औषधीय उपयोग भी हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥