श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 6: पूतना वध  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  10.6.2 
कंसेन प्रहिता घोरा पूतना बालघातिनी ।
शिशूंश्चचार निघ्नन्ती पुरग्रामव्रजादिषु ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
कंसेन—कंस द्वारा; प्रहिता—पहले से लगाई गई; घोरा—अत्यन्त भयानक; पूतना—पूतना नामक; बाल-घातिनी—राक्षसी; शिशून्—छोटे छोटे बच्चों को; चचार—घूमती रहती थी; निघ्नन्ती—मारती हुई; पुर-ग्राम-व्रज-आदिषु—नगरों, गाँवों में इधर उधर ।.
 
अनुवाद
 
 जब नन्द महाराज गोकुल लौट रहे थे तो वही विकराल पूतना, जिसे कंस ने बच्चों को मारने के लिए पहले से नियुक्त कर रखा था, नगरों तथा गाँवों में घूम घूम कर अपना नृशंस कृत्य कर रही थी।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥