श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 6: पूतना वध  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  10.6.20 
गोमूत्रेण स्‍नापयित्वा पुनर्गोरजसार्भकम् ।
रक्षां चक्रुश्च शकृता द्वादशाङ्गेषु नामभि: ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
गो-मूत्रेण—गायों के पेशाब से; स्नापयित्वा—नहला कर; पुन:—फिर से; गो-रजसा—गोधूलि से; अर्भकम्—छोटे बालक को; रक्षाम्—रक्षा; चक्रु:—सम्पन्न किया; च—भी; शकृता—गोबर से; द्वादश-अङ्गेषु—बारह जगहों में (द्वादश तिलक); नामभी:—भगवान् का नाम अंकित करके ।.
 
अनुवाद
 
 बालक को गोमूत्र से अच्छी तरह नहलाया गया और फिर गोधूलि से उसको लेप किया गया। फिर उनके शरीर में बारह अंगों पर, तिलक लगाने की भाँति माथे से शुरु करके, गोबर से भगवान् के विभिन्न नाम अंकित किये गये। इस तरह बालक को सुरक्षा प्रदान की गई।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥