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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 6: पूतना वध  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  10.6.31 
तावन्नन्दादयो गोपा मथुराया व्रजं गता: ।
विलोक्य पूतनादेहं बभूवुरतिविस्मिता: ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
तावत्—तब तक, इस बीच; नन्द-आदय:—नन्द महाराज इत्यादि; गोपा:—सारे ग्वाले; मथुराया:—मथुरा से; व्रजम्— वृन्दावन; गता:—वापस आ गये; विलोक्य—देखकर; पूतना-देहम्—पूतना के मृत विशाल शरीर को; बभूवु:—हो गये; अति—अत्यन्त; विस्मिता:—आश्चर्यचकित ।.
 
अनुवाद
 
 तब तक नन्द महाराज समेत सारे ग्वाले मथुरा से लौट आये और जब उन्होंने रास्ते में पूतना के विशाल काम शरीर को मृत पड़ा देखा तो वे अत्यन्त आश्चर्यचकित हुए।
 
तात्पर्य
 नन्द महाराज के आश्चर्य को कई प्रकार से समझा जा सकता है। पहला तो यह कि ग्वालों ने इसके पूर्व वृन्दावन में इतना विशाल शरीर नहीं देखा था इसलिए सभी लोग आश्चर्यचकित थे। फिर वे विचार करने लगे कि आखिर इतना विशाल शरीर आया कहाँ से? क्या यह आकाश से गिरा था या क्या किसी भूल से या किसी योगिनी की शक्ति से वे वृन्दावन की बजाय किसी दूसरे स्थान पहुँच गये हैं? वे ठीक से अनुमान नहीं लगा सके कि क्या हुआ इसीलिए वे आश्चर्यचकित थे।
 
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