श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 6: पूतना वध  »  श्लोक 5-6
 
 
श्लोक  10.6.5-6 
तां केशबन्धव्यतिषक्तमल्लिकां
बृहन्नितम्बस्तनकृच्छ्रमध्यमाम् ।
सुवाससं कल्पितकर्णभूषण-
त्विषोल्लसत्कुन्तलमण्डिताननाम् ॥ ५ ॥
वल्गुस्मितापाङ्गविसर्गवीक्षितै-
र्मनो हरन्तीं वनितां व्रजौकसाम् ।
अमंसताम्भोजकरेण रूपिणीं
गोप्य: श्रियं द्रष्टुमिवागतां पतिम् ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
ताम्—उसको; केश-बन्ध-व्यतिषक्त-मल्लिकाम्—जिसके जूड़े मल्लिका के फूलों की मालाओं से सजाये गये थे; बृहत्— बहुत बड़े; नितम्ब-स्तन—अपने कूल्हों तथा दृढ़ स्तनों से; कृच्छ्र-मध्यमाम्—पतली कमर के भार से नत; सु-वाससम्—अच्छे वस्त्रों से सज्जित; कल्पित-कर्ण-भूषण—कानों में पहने कुण्डलों की; त्विषा—चमक से; उल्लसत्—अत्यन्त आकर्षक; कुन्तल-मण्डित-आननाम्—काले बालों से घिरे सुन्दर मुखमण्डल वाली; वल्गु-स्मित-अपाङ्ग-विसर्ग-वीक्षितै:—हास्ययुक्त चितवन से; मन: हरन्तीम्—मन को हरती हुई; वनिताम्—अत्यन्त आकर्षक स्त्री ने; व्रज-ओकसाम्—गोकुलवासियों को; अमंसत—सोचा; अम्भोज—कमल लिये हुए; करेण—हाथ से; रूपिणीम्—अत्यन्त सुन्दर; गोप्य:—गोकुल की रहने वाली गोपियाँ; श्रियम्—लक्ष्मी; द्रष्टुम्—देखने के लिए; इव—मानो; आगताम्—आई हो; पतिम्—पति को ।.
 
अनुवाद
 
 उसके नितम्ब भारी थे, उसके स्तन सुदृढ़ तथा विशाल थे जिससे उसकी पतली कमर पर अधिक बोझ पड़ता प्रतीत हो रहा था। वह अत्यन्त सुन्दर वस्त्र धारण किये थी। उसके केश मल्लिका फूल की माला से सुसज्जित थे जो उसके सुन्दर मुख पर बिखरे हुए थे। उसके कान के कुण्डल चमकीले थे। वह हर व्यक्ति पर दृष्टि डालते हुए आकर्षक ढंग से मुसका रही थी। उसकी सुन्दरता ने व्रज के सारे निवासियों का विशेष रूप से पुरुषों का ध्यान आकृष्ट कर रखा था। जब गोपियों ने उसे देखा तो उन्होंने सोचा कि हाथ में कमल का फूल लिए लक्ष्मी जी अपने पति कृष्ण को देखने आई हैं।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥