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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 6: पूतना वध  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  10.6.9 
तां तीक्ष्णचित्तामतिवामचेष्टितां
वीक्ष्यान्तरा कोषपरिच्छदासिवत् ।
वरस्त्रियं तत्प्रभया च धर्षिते
निरीक्ष्यमाणे जननी ह्यतिष्ठताम् ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
ताम्—उस (पूतना राक्षसी को); तीक्ष्ण-चित्ताम्—बच्चों का वध करने के लिए अत्यन्त पाषाण हृदय वाली; अति-वाम- चेष्टिताम्—यद्यपि वह बच्चे के साथ माता से भी अधिक अच्छा बर्ताव करने का प्रयास कर रही थी; वीक्ष्य अन्तरा—कमरे के भीतर उसे देख कर; कोष-परिच्छद-असि-वत्—मुलायम म्यान के भीतर तेज तलवार की तरह; वर-स्त्रियम्—सुन्दर स्त्री के; तत्-प्रभया—उसके प्रभाव से; —भी; धर्षिते—अभिभूत, विह्वल; निरीक्ष्यमाणे—देख रही थीं; जननी—दोनों माताएँ; हि— निश्चय ही; अतिष्ठताम्—वे मौन रह गईं ।.
 
अनुवाद
 
 पूतना राक्षसी का हृदय कठोर एवं क्रूर था किन्तु ऊपर से वह अत्यन्त स्नेहमयी माता सदृश लग रही थी। वह मुलायम म्यान के भीतर तेज तलवार जैसी थी। यद्यपि यशोदा तथा रोहिणी ने उसे कमरे के भीतर देखा किन्तु उसके सौन्दर्य से अभिभूत होने के कारण उन्होंने उसे रोका नहीं अपितु वे मौन रह गईं क्योंकि वह बच्चे के साथ मातृवत् व्यवहार कर रही थी।
 
तात्पर्य
 यद्यपि पूतना बाहरी स्त्री थी और साक्षात् भयानक काल थी क्योंकि उसके हृदय में बालक को मार डालने का संकल्प था किन्तु जब वह आई और उसने बालक को अपनी गोद में ले लिया तो बालक की माताएँ उसके सौन्दर्य पर इतनी मुग्ध हो गईं कि उन्होंने उसे ऐसा करने से रोका भी नहीं। कभी-कभी सुन्दर स्त्री अत्यन्त घातक होती है क्योंकि लोग उसकी ब्राह्य सुन्दरता पर मोहित होकर (मायामोहित ) यह नहीं समझ पाते कि उसके मन में आखिर है क्या! जो लोग बहिरंगा शक्ति के सौन्दर्य द्वारा मुग्ध हो जाते हैं, वे मायामोहित कहलाते हैं। मोहितं नाभिजानाति मामेभ्य: परमव्ययम् (भगवद्गीता ७.१३)। न ते विदु:स्वार्थगतिं हि विष्णुंदुराशया ये बहिरर्थमानिन: (श्रीमद्भागवत ७.५.३१)। यहाँ पर रोहिणी तथा यशोदा दोनों माताएँ बाह्य शक्ति से मुग्ध अर्थात् मायामोहित न थीं अपितु भगवान् की लीला के विकास हेतु योगमाया द्वारा वे मुग्ध कर दी गईं। योगमाया का कार्य ही है ऐसा मायामोह।
 
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