जब नन्द महाराज वसुदेव के आदेशानुसार घर लौट रहे थे तो उन्होंने मार्ग पर एक विशाल राक्षसी को पड़े देखा और बाद में उसकी मृत्यु के बारे में भी सुना। जब व्रज के राजा नन्द महाराज गोकुल में होने वाले उत्पातों के बारे में वसुदेव के शब्दों पर विचार कर रहे थे तो वे कुछ भयभीत थे और उन्होंने श्री हरि के चरणकमलों में शरण ग्रहण की। उसी बीच कंस ने गोकुल गाँव में पूतना नाम की एक राक्षसी भेजी जो इधर-उधर घूम-घूमकर छोटे-छोटे बच्चों को मार डालती थी। निस्सन्देह जहाँ कृष्णभावनामृत नहीं है, वहाँ ऐसी राक्षसिनियों का खतरा रहता है, किन्तु जिस गोकुल में साक्षात् भगवान् हों वहाँ पूतना को अपनी ही मृत्यु के अतिरिक्त और क्या मिल सकता था! एक दिन पूतना बाह्य आकाश से नन्द महाराज के घर गोकुल में पहुँची और अपनी योगशक्ति से अति सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर लिया। वह साहस करके बिना किसी की अनुमति लिए सीधे कृष्ण के शयन-कक्ष में घुस गई। कृष्णकृपा से उसे किसी ने घर में या कमरे में घुसने से मना नहीं किया क्योंकि कृष्ण की ऐसी ही इच्छा थी। बालक कृष्ण ने जो राख से ढकी अग्नि के समान थे, पूतना को देखा और सोचा कि मुझे इस सुन्दर स्त्री के रूप वाली राक्षसिनी का वध करना होगा। योगमाया तथा भगवान् के प्रभाव से मोहित होकर पूतना ने कृष्ण को अपनी गोद में ले लिया तो न तो रोहिणी ने मना किया, न ही यशोदा ने। तब पूतना कृष्ण को अपने स्तन पिलाने लगी, किन्तु उनमें विष चुपड़ा हुआ था। इसलिए बालक कृष्ण ने उसके स्तन इतनी जोर-जोर से चूसे कि उसे असह्य पीड़ा हुई जिससे वह अपना असली रूप में आकर भूमि पर गिर पड़ी। तब कृष्ण उसके स्तन पर एक छोटे शिशु की तरह खेलने लगे। उन्हें खेलता हुआ देखकर गोपियों को राहत हुई और उन्होंने बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। इस घटना के बाद गोपियाँ चौकन्नी रहने लगीं जिससे कोई राक्षसिनी आक्रमण न करे। तब माता यशोदा ने बालक को अपना दूध पिलाया और बिस्तर पर लिटा दिया। तब तक नन्द तथा उनके संगी ग्वाले मथुरा से लौट आए थे और जब उन्होंने पूतना के विशाल मृत शरीर को देखा तो वे हक्के-बक्के रह गए। हर एक को आश्चर्य हो रहा था कि वसुदेव ने इस दुर्घटना का पूर्वानुमान लगा लिया था। अत: सारे लोग वसुदेव की दूरदृष्टि की प्रशंसा करने लगे। व्रजवासियों ने पूतना के शरीर के खंड-खंड कर डाले, किन्तु कृष्ण द्वारा स्तनपान किए जाने से उसके सारे पाप दूर हो चुके थे अत: जब ग्वालों ने उन टुकड़ों का अग्निदाह किया, तो उससे उठे धुएँ से चारों ओर की वायु आनंदमय सुगंध से भर गई। इस तरह यद्यपि पूतना ने कृष्ण को मार डालना चाहा था वह भगवद्धाम पहुँच गई। इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि कोई व्यक्ति कृष्ण से थोड़ा-बहुत भी लगाव रखता है, चाहे वह शत्रुभाव से क्यों न हो, तो उसे सफलता अवश्य मिलती है। भला उन भक्तों के विषय में क्या कहा जाए जो कृष्ण प्रेम में सहज ही अनुरक्त रहते हैं? जब व्रजवासियों ने पूतना-वध तथा शिशु की कुशलता का समाचार सुना तो वे अत्यधिक प्रसन्न हुए। नन्द महाराज ने बालक को अपनी गोद में उठा लिया और सन्तोष की साँस ली। |