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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  10.60.10 
श्रीभगवानुवाच
राजपुत्रीप्सिता भूपैर्लोकपालविभूतिभि: ।
महानुभावै: श्रीमद्भ‍ी रूपौदार्यबलोर्जितै: ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
श्री-भगवान् उवाच—भगवान् ने कहा; राज-पुत्रि—हे राजकुमारी; ईप्सिता—(तुम्हीं) अभीष्ट (थीं); भू-पै:—राजाओं द्वारा; लोक—लोकों के; पाल—शासकों जैसे; विभूतिभि:—शक्तियों वाले; महा—महान्; अनुभावै:—प्रभाव वाले; श्री-मद्भि:— ऐश्वर्यशाली; रूप—सौन्दर्य से युक्त; औदार्य—उदारता; बल—तथा शारीरिक बल; ऊर्जितै:—समन्वित ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् ने कहा : हे राजकुमारी, तुम्हारे साथ लोकपालों जैसे शक्तिशाली अनेक राजा पाणिग्रहण करना चाहते थे। वे सभी राजनैतिक प्रभाव, सम्पत्ति, सौन्दर्य, उदारता तथा शारीरिक शक्ति से ऊर्जित थे।
 
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥