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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.60.11 
तान्प्राप्तानर्थिनो हित्वा चैद्यादीन् स्मरदुर्मदान् ।
दत्ता भ्रात्रा स्वपित्रा च कस्मान्नो ववृषेऽसमान् ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
तान्—उनको; प्राप्तान्—आये हुए; अर्थिन:—चाहने वालों को; हित्वा—अस्वीकार करके; चैद्य—शिशुपाल; आदीन्—इत्यादि को; स्मर—कामदेव द्वारा; दर्मदान्—उन्मत्त; दत्ता—दी गई; भ्रात्रा—तुम्हारे भाई द्वारा; स्व—अपने; पित्रा—पिता द्वारा; — तथा; कस्मात्—क्यों; न:—हमको; ववृषे—तुमने चुना; असमान्—असमान ।.
 
अनुवाद
 
 जब तुम्हें तुम्हारे भाई तथा पिता ने उनको अर्पित कर दिया था, तो फिर तुमने चेदि के राजा तथा उन अन्य विवाहार्थियों को क्यों अस्वीकार कर दिया जो कामदेव द्वारा उन्मत्त हुए तुम्हारे समक्ष खड़े थे? तुमने हमें क्यों चुना जो रंच-भर भी तुम्हारे समान नहीं हैं?
 
 
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