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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.60.13 
अस्पष्टवर्त्मनां पुंसामलोकपथमीयुषाम् ।
आस्थिता: पदवीं सुभ्रु प्राय: सीदन्ति योषित: ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
अस्पष्ट—अनिश्चित; वर्त्मनाम्—आचरण वाले; पुंसाम्—पुरुषों के; अलोक—सामान्य समाज द्वारा अस्वीकार्य; पथम्—मार्ग को; ईयुषां—ग्रहण करने वाले; आस्थिता:—अनुसरण करते हुए; पदवीम्—मार्ग को; सु-भ्रु—हे सुन्दर भौंहों वाली; प्राय:— सामान्यतया; सीदन्ति—कष्ट पाती हैं; योषित:—स्त्रियाँ ।.
 
अनुवाद
 
 हे सुन्दर भौंहों वाली, जब स्त्रियाँ ऐसे पुरुषों के साथ रहती हैं जिनका आचरण अनिश्चित होता है और जो समाज-सम्मत मार्ग का अनुसरण नहीं करते तो प्राय: उन्हें कष्ट भोगना पड़ता है।
 
 
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