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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.60.14 
निष्किञ्चना वयं शश्वन्निष्किञ्चनजनप्रिया: ।
तस्मात् प्रायेण न ह्याढ्या मां भजन्ति सुमध्यमे ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
निष्किञ्चना:—जिनके पास कुछ भी नहीं है; वयम्—हम; शश्वत्—सदैव; निष्किञ्चन-जन—उन्हें, जिनके पास कुछ भी नहीं है; प्रिया:—प्रिय; तस्मात्—इसलिए; प्रायेण—प्राय:; —नहीं; हि—निस्सन्देह; आढ्या:—धनी; माम्—मुझको; भजन्ति—पूजते हैं; सु-मध्यमे—हे सुन्दर कटि वाली ।.
 
अनुवाद
 
 हमारे पास भौतिक सम्पत्ति नहीं है और हम उन्हें ही प्रिय हैं जिनके पास हमारी ही तरह कुछ भी नहीं होता। इसलिए हे सुमध्यमे, धनी लोग शायद ही हमारी पूजा करते हों।
 
तात्पर्य
 भगवान् की ही तरह उनके भक्तगण भी कृष्णभावनामृत के श्रेष्ठ आनन्द के प्रति जागृत होने से भौतिक इन्द्रिय-तृप्ति में अरुचि रखते हैं। जो लोग भौतिक सम्पत्ति से मदान्ध हैं, वे भगवद्धाम की परम सम्पत्ति को नहीं जान पाते।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥