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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  10.60.19 
तेषां वीर्यमदान्धानां दृप्तानां स्मयनुत्तये ।
आनितासि मया भद्रे तेजोपहरतासताम् ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
तेषाम्—उन सबों का; वीर्य—अपनी शक्ति के; मद—नशे से; अन्धानाम्—अन्धे हुए; दृप्तानाम्—घमंडी; स्मय—उद्दंडता; नुत्तये—दूर करने के लिए; आनिता असि—तुम्हें विवाह में हर लिया गया; मया—मेरे द्वारा; भद्रे—कल्याणी, भद्र महिला; तेज:—बल; उपहरता—हटाते हुए; असताम्—दुष्टों के ।.
 
अनुवाद
 
 इन्हीं राजाओं की उद्दंडता को दूर करने के लिए ही, हे कल्याणी, मैं तुम्हें हर ले आया क्योंकि वे सभी शक्ति के मद से अन्धे हो चले थे। मेरा उद्देश्य दुष्टों की शक्ति को चूर करना था।
 
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥