रुक्मिणीदेवी ने इसके पूर्व कभी भी अपने प्रिय त्रिलोकेश-पति से ऐसी अप्रिय बातें नहीं सुनी थीं अत: वे भयभीत हो उठीं। उनके हृदय में कँपकपी शुरू हो गई और भीषण उद्विग्नता में वे रोने लगीं।
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