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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.60.23 
पदा सुजातेन नखारुणश्रिया
भुवं लिखन्त्यश्रुभिरञ्जनासितै: ।
आसिञ्चती कुङ्कुमरूषितौ स्तनौ
तस्थावधोमुख्यतिदु:खरुद्धवाक् ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
पदा—अपने पाँव से; सु-जातेन—अत्यन्त कोमल; नख—नाखूनों के; अरुण—लाल लाल; श्रीया—तेज वाले; भुवम्—पृथ्वी को; लिखन्ती—कुरेदती हुई; अश्रुभि:—अपने आँसुओं से; अञ्जन—काजल; असितै:—काले; आसिञ्चती—सींचती हुई; कुङ्कुम—कुंकुम-चूर्ण से; रूषितौ—लाल; स्तनौ—दोनों स्तन; तस्थौ—शान्त खड़ी हो गईं; अध:—नीचे की ओर; मुखी— मुख किये; अति—अत्यन्त; दु:ख—दुख से; रुद्ध—रुकी; वाक्—वाणी ।.
 
अनुवाद
 
 वे लाल-लाल चमकीले वाले नाखुनों से युक्त अपने कोमल पाँव से भूमि कुरेदने लगीं और अपनी आँख में लगे काजल द्वारा काले हुए आँसुओं से कुंकुम के कारण लाल हुए स्तनों को भिगो दिया। वे मुख नीचा किये खड़ी रहीं और अत्यधिक शोक से उनकी वाणी अवरुद्ध हो गई।
 
 
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