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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.60.26 
पर्यङ्कादवरुह्याशु तामुत्थाप्य चतुर्भुज: ।
केशान् समुह्य तद्वक्त्रं प्रामृजत् पद्मपाणिना ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
पर्यङ्कात्—बिस्तर से; अवरुह्य—उतर कर; आशु—जल्दी से; ताम्—उसको; उत्थाप्य—उठाते हुए; चतुर्-भुज:—चार भुजाएँ प्रदर्शित करते; केशान्—उसके बालों को; समुह्य—ठीक करते; तत्—उसके; वक्त्रम्—मुख को; प्रामृजत्—पोंछा; पद्म पाणिना—अपने कर-कमल से ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् तुरन्त बिस्तर से उतर आये। चार भुजाएँ प्रकट करते हुए उन्होंने उन्हें (रुक्मिणी को) उठाया, उनके बाल ठीक-ठाक किए और अपने कर-कमलों से उनका मुख सहलाया।
 
तात्पर्य
 भगवान् ने चार भुजाएँ इसलिए प्रकट कीं कि वे सारे कार्य एकसाथ पूरा कर सकें।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥