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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  10.60.34 
श्रीरुक्‍मिण्युवाच
नन्वेवमेतदरविन्दविलोचनाह
यद्वै भवान् भगवतोऽसद‍ृशी विभूम्न: ।
क्व‍ स्वे महिम्न्यभिरतो भगवांस्‍त्र्यधीश:
क्व‍ाहं गुणप्रकृतिरज्ञगृहीतपादा ॥ ३४ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-रुक्मिणी उवाच—श्री रुक्मिणी ने कहा; ननु—ठीक है; एवम्—ऐसी ही हो; एतत्—यह; अरविन्द-विलोचन—हे कमल जैसे नेत्रों वाले; आह—कहा; यत्—जो; वै—निस्सन्देह; भवान्—आप; भगवत:—भगवान् के; असदृशी—असमान; विभूम्न:—सर्वशक्तिमान से; क्व—कहाँ, तुलना में; स्वे—अपनी; महिम्नि—महिमा में; अभिरत:—आनन्द लेते हुए; भगवान्—भगवान्; त्रि—तीन (मुख्य देवता, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) के; अधीश:—नियन्ता; क्व—तथा कहाँ; अहम्—मैं; गुण—गुणों का; प्रकृति:—स्वभाव; अज्ञ—मूर्ख व्यक्तियों द्वारा; गृहीत—पकड़े हुए; पादा—जिनके चरण ।.
 
अनुवाद
 
 श्री रुक्मिणी ने कहा : हे कमल-नयन, आपने जो कहा है वस्तुत: वह सच है। मैं सचमुच सर्वशक्तिमान भगवान् के अनुपयुक्त हूँ। कहाँ तीन प्रमुख देवों के स्वामी एवं अपनी ही महिमा में मग्न रहने वाले भगवान् और कहाँ मैं संसारी गुणों वाली स्त्री जिसके चरण मूर्खजन ही पकड़ते हैं?
 
तात्पर्य
 श्रील श्रीधर स्वामी उन दोषों की सूची देते हैं, जिन्हें कृष्ण ने अपने में होने के बारे में बतलाते हुए अपने को रुक्मिणी का पति होने के अयोग्य घोषित किया था। इसमें समरूप न होना, भयभीत रहना, समुद्र में शरण लेना, बली लोगों से झगडऩा, अपना राज्य छोडऩा, अपने स्वरूप के बारे में अनिश्चय, सामान्य आचरण के मापदण्डों के विरुद्ध कार्य करना, सद्गुणों से विहीन होना, केवल भिखमंगों द्वारा झूठे ही प्रशंसित होना, एकान्तप्रियता, गृहस्थ जीवन की इच्छा का अभाव सम्मिलित हैं। भगवान् ने दावा किया कि रुक्मिणी उनके इन दुर्गुणों को पहचान नहीं पाईं। अब वे भगवान् के सभी कथनों का जवाब देती हैं।

सर्वप्रथम वे श्लोक ११ में आये श्रीकृष्ण के कथन—कस्मान् नो ववृषेऽसमान्—तुमने हमें क्यों चुना जब हम तुम्हारे समान नहीं हैं? का उत्तर देती हैं। यहाँ श्रीमती रुक्मिणीदेवी कहती हैं कि वे तथा श्रीकृष्ण निश्चय ही समान नहीं हैं क्योंकि कोई भी भगवान् के समान नहीं हो सकता। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ने यह भी इंगित किया है कि रुक्मिणी विनयवश अपनी पहचान भगवान् की बहिरंगा शक्ति से कर रही हैं, जो वस्तुत: उनकी अंश है क्योंकि रुक्मिणी स्वयं लक्ष्मी हैं।

 
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