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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  10.60.41 
यद्वाञ्छया नृपशिखामणयोऽङ्गवैन्य-
जायन्तनाहुषगयादय ऐक्यपत्यम् ।
राज्यं विसृज्य विविशुर्वनमम्बुजाक्ष
सीदन्ति तेऽनुपदवीं त इहास्थिता: किम् ॥ ४१ ॥
 
शब्दार्थ
यत्—जिसके लिए; वाञ्छया—इच्छा से; नृप—राजाओं के; शिखामणय:—मुकुट के मणि; अङ्ग-वैन्य-जायन्त-नाहुष-गय- आदय:—अंग (वेन का पिता), वैन्य (वेन का पुत्र, पृथु), जायन्त (भरत), नाहुष (ययाति), गय आदि; ऐक्य—एकमात्र; पत्यम्—प्रभुसत्ता युक्त, एकछत्र; राज्यम्—उनके राज्य; विसृज्य—त्याग कर; विविशु:—प्रवेश किया; वनम्—जंगल में; अम्बुज-अक्ष—हे कमल-नेत्र; सीदन्ति—कष्ट उठाते हैं, हताश होते हैं; ते—तुम्हारे; अनुपदवीम्—पथ पर; ते—वे; इह—इस जगत में; आस्थिता:—स्थिर; किम्—क्या ।.
 
अनुवाद
 
 आपका सान्निध्य प्राप्त करने की अभिलाषा से अंग, वैन्य, जायन्त, नाहुष, गय तथा अन्य श्रेष्ठ राजाओं ने अपने मरा पूरा साम्राज्य त्याग कर आपकी खोज करने के लिए जंगल में प्रवेश किया। हे कमल-नेत्र, भला वे राजा क्योंकर इस जगत में हताश होंगे?
 
तात्पर्य
 यहाँ पर रुक्मिणी ने श्लोक १३ में कृष्ण द्वारा प्रस्तुत विचारों का निराकरण किया है। वस्तुत: श्रीमती रुक्मिणीदेवी भगवान् कृष्ण के ही शब्दों को दुहराती हैं। भगवान् ने कहा था— आस्थिता: पदवीं सुभ्रु प्राय: सीदन्ति योषित:—जो स्त्रियाँ मेरे मार्ग का अनुसरण करतीं है वे सामान्यत: कष्ट भोगती हैं। यहाँ रुक्मिणीदेवी कहती हैं—सीदन्ति तेऽनुपदवीं त इहास्थिता: किम्—जो लोग आपके मार्ग में स्थित हैं, वे इस जगत में क्योंकर कष्ट भोगें? वे अनेक महान् राजाओं का उदाहरण देती हैं जिन्होंने जंगल में प्रवेश करने के लिए अपने एकछत्र साम्राज्य का परित्याग किया जहाँ उन्होंने तपस्या की और उनकी दिव्य संगति प्राप्त करने की इच्छा से भगवान् की पूजा की। इस तरह श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती के अनुसार श्रीमती रुक्मिणीदेवी यहाँ श्रीकृष्ण को बतलाना चाहती हैं “आपने कहा है कि मैं राजा की पुत्री होने के कारण अज्ञानी तथा हताश हूँ क्योंकि मैंने आपसे विवाह किया है। किन्तु आप इन महान् प्रबुद्ध राजाओं पर अज्ञानी होने का आरोप कैसे लगा सकते हैं? वे सर्वाधिक बुद्धिमान पुरुष थे फिर भी उन्होंने आपका अनुसरण करने के लिए सर्वस्व त्याग दिया और इसके फलस्वरूप वे कभी हताश नहीं हुए। निस्सन्देह उन्होंने आपका सान्निध्य प्राप्त किया।”
 
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