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श्लोक 10.60.50  |
यान् यान् कामयसे कामान् मय्यकामाय भामिनि ।
सन्ति ह्येकान्तभक्तायास्तव कल्याणि नित्यद ॥ ५० ॥ |
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शब्दार्थ |
यान् यान्—जो जो; कामयसे—कामना करती हो; कामान्—वरों को; मयि—मुझसे; अकामाय—इच्छा से रहित होने के लिए; भामिनि—हे सुन्दरी; सन्ति—हैं; हि—निस्सन्देह; एक-अन्त—नितान्त; भक्ताया:—भक्तों के लिए; तव—तुम्हारे; कल्याणि—हे कल्याणी; नित्यदा—सदैव ।. |
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अनुवाद |
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हे सुन्दर तथा सुशील स्त्री, तुम भौतिक इच्छाओं से मुक्त होने के लिए जिस भी वर की आशा रखती हो वे तुम्हारे हैं क्योंकि तुम मेरी अनन्य भक्त हो। |
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