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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  10.60.50 
यान् यान् कामयसे कामान् मय्यकामाय भामिनि ।
सन्ति ह्येकान्तभक्तायास्तव कल्याणि नित्यद ॥ ५० ॥
 
शब्दार्थ
यान् यान्—जो जो; कामयसे—कामना करती हो; कामान्—वरों को; मयि—मुझसे; अकामाय—इच्छा से रहित होने के लिए; भामिनि—हे सुन्दरी; सन्ति—हैं; हि—निस्सन्देह; एक-अन्त—नितान्त; भक्ताया:—भक्तों के लिए; तव—तुम्हारे; कल्याणि—हे कल्याणी; नित्यदा—सदैव ।.
 
अनुवाद
 
 हे सुन्दर तथा सुशील स्त्री, तुम भौतिक इच्छाओं से मुक्त होने के लिए जिस भी वर की आशा रखती हो वे तुम्हारे हैं क्योंकि तुम मेरी अनन्य भक्त हो।
 
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥