हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  10.60.59 
तथान्यासामपि विभुर्गृहेषु गृहवानिव ।
आस्थितो गृहमेधीयान् धर्मान् लोकगुरुर्हरि: ॥ ५९ ॥
 
शब्दार्थ
तथा—इसी तरह से; अन्यासाम्—अन्यों (रानियों) के; अपि—भी; विभु:—सर्वशक्तिमान भगवान्; गृहेषु—घरों में; गृह वान्—गृहस्थ; इव—मानो; आस्थित:—पूरी की गई; गृह-मेधीयान्—पवित्र गृहस्थों के; धर्मान्—धार्मिक कर्तव्य; लोक—सारे जगतों के; गुरु:—गुरु; हरि:—कृष्ण ने ।.
 
अनुवाद
 
 समस्त लोकों के गुरु सर्वशक्तिमान भगवान् हरि ने इसी तरह से अपनी अन्य रानियों के महलों में गृहस्थ के धार्मिक कृत्य सम्पन्न करते हुए पारम्परिक गृहस्थ की तरह आचरण किया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के अन्तर्गत “रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास” नामक साठवें अध्याय के श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के विनीत सेवकों द्वारा रचित तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥