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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.60.7 
वालव्यजनमादाय रत्नदण्डं सखीकरात् ।
तेन वीजयती देवी उपासां चक्र ईश्वरम् ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
वाल—चमरी के बाल के; व्यजनम्—पंखे को; आदाय—लेकर; रत्न—रत्न की; दण्डम्—डंडी वाले; सखी—अपनी सहेली के; करात्—हाथ से; तेन—उससे; वीजयती—पंखा झलती; देवी—देवी; उपासाम् चक्रे—पूजा की; ईश्वरम्—अपने स्वामी की ।.
 
अनुवाद
 
 देवी रुक्मिणी ने अपनी दासी के हाथ से रत्नों की डंडी वाला चमरी के बाल का पंखा ले लिया और तब अपने पति पर पंखा झलकर सेवा करने लगीं।
 
 
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