महारानी रुक्मिणी का हाथ अँगूठियों, चूडिय़ों तथा चामर पंखे से सुशोभित था और वे भगवान् कृष्ण के निकट खड़ी हुई अतीव सुन्दर लग रही थीं। उनके रत्नजटित पायल शब्द कर रहे थे तथा उनके गले की माला चमचमा रही थी जो उनकी साड़ी के पल्ले से ढके उनके स्तनों पर लगे कुमकुम से लाल लाल हो रही थी। वे अपनी कमर में अमूल्य करधनी पहने थीं।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती इंगित करते हैं कि जब महारानी रुक्मिणी तेजी से भगवान् पर पंखा झल रही थीं तो उनके सुन्दर अंगों के रत्न तथा स्वर्णाभूषण शब्द कर रहे थे।
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