हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 60: रुक्मिणी के साथ कृष्ण का परिहास  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.60.8 
सोपाच्युतं क्व‍णयती मणिनूपुराभ्यां
रेजेऽङ्गुलीयवलयव्यजनाग्रहस्ता ।
वस्‍त्रान्तगूढकुचकुङ्कुमशोणहार-
भासा नितम्बधृतया च परार्ध्यकाञ्च्या ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
सा—वह; उप—समीप; अच्युतम्—भगवान् कृष्ण के; क्वणयती—शब्द करती; मणि—मणिजटित; नूपुराभ्याम्—अपने नूपुरों से; रेजे—सुन्दर लग रही थी; अङ्गुलीय—अँगूठी; वलय—चूडिय़ाँ; व्यजन—तथा पंखे सहित; अग्र-हस्ता—अपने हाथ में; वस्त्र—अपने वस्त्र के; अन्त—छोर से; गूढ—छिपे; कुच—स्तनों से; कुङ्कुम—सिंदूर से; शोण—लाल हुए; हार—गले के हार की; भासा—चमक से; नितम्ब—उसके कूल्हे पर; धृतया—पहनी हुई; —तथा; परार्ध्य—बहुमूल्य; काञ्च्या—करधनी से ।.
 
अनुवाद
 
 महारानी रुक्मिणी का हाथ अँगूठियों, चूडिय़ों तथा चामर पंखे से सुशोभित था और वे भगवान् कृष्ण के निकट खड़ी हुई अतीव सुन्दर लग रही थीं। उनके रत्नजटित पायल शब्द कर रहे थे तथा उनके गले की माला चमचमा रही थी जो उनकी साड़ी के पल्ले से ढके उनके स्तनों पर लगे कुमकुम से लाल लाल हो रही थी। वे अपनी कमर में अमूल्य करधनी पहने थीं।
 
तात्पर्य
 श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती इंगित करते हैं कि जब महारानी रुक्मिणी तेजी से भगवान् पर पंखा झल रही थीं तो उनके सुन्दर अंगों के रत्न तथा स्वर्णाभूषण शब्द कर रहे थे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥