बाणासुर अपने बल से उन्मत्त था। एक दिन जब शिवजी उसकी बगल में खड़े थे, तो बाणासुर ने अपने सूर्य जैसे चमचमाते मुकुट से उनके चरणकमलों का स्पर्श किया और उनसे इस प्रकार कहा।
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