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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 62: ऊषा-अनिरुद्ध मिलन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.62.7 
कण्डूत्या निभृतैर्दोर्भिर्युयुत्सुर्दिग्गजानहम् ।
आद्यायां चूर्णयन्नद्रीन् भीतास्तेऽपि प्रदुद्रुवु: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
कण्डूत्या—खुजलाती; निभृतै:—पूरित; दोर्भि:—मेरी भुजाओं से; युयुत्सु:—लडऩे के लिए उत्सुक; दिक्—दिशाओं के; गजान्—हाथियों से; अहम्—मैं; आद्य—हे आदि-देव; अयम्—गया; चूर्णयन्—चूर्ण करते हुए; अद्रीन्—पर्वतों को; भीता:—भयभीत; ते—वे; अपि—भी; प्रदुद्रुवु:—भाग गये ।.
 
अनुवाद
 
 हे आदि-देव, दिशाओं पर शासन करने वाले हाथियों से लडऩे के लिए उत्सुक मैं युद्ध के लिए खुजला रही अपनी भुजाओं से पर्वतों को चूर करते हुए आगे बढ़ता गया। किन्तु वे बड़े बड़े हाथी भी डर के मारे भाग गये।
 
 
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