श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 62: ऊषा-अनिरुद्ध मिलन  » 
 
 
 
संक्षेप विवरण
 
 इस अध्याय में अनिरुद्ध तथा उषा के मिलन एवं बाणासुर के साथ अनिरुद्ध के युद्ध का वर्णन हुआ है।
राजा बलि के एक सौ पुत्रों में बाणासुर सबसे बड़ा था। वह शिवजी का महान् भक्त था और वे बाण का इतना पक्ष लेते थे कि इन्द्र जैसे देवता भी उसकी चाकरी किया करते थे। एक बार बाणासुर ने शिवजी के ताण्डव-नृत्य करते समय अपने एक हजार भुजाओं से संगीत-वाद्य बजा कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। बदले में शिवजी ने उसे मुँहमाँगा वर दिया। बाण ने शिवजी से याचना की कि वे उसकी नगरी के रक्षक बन जाँय।

एक दिन बाण को युद्ध करने का मन हुआ तो उसने शिवजी से कहा: “आपको छोडक़र पूरे संसार में कोई योद्धा इतना बलशाली नहीं है, जो मुझसे युद्ध कर सके। इसलिए आप द्वारा प्रदत्त ये हजार बाहुएँ मेरे लिए केवल भार हैं।” इन शब्दों से क्रुद्ध होकर शिवजी बोले, “तुम्हारा यह गर्व तब चूर होगा जब तुम मुझ जैसे बल वाले से युद्ध करोगे। तब तुम्हारे रथ की ध्वजा टूट कर भूमि पर गिर जायेगी।”

एक बार बाणासुर की पुत्री उषा ने स्वप्न में एक प्रेमी को देखा। ऐसा कई रातों तक लगातार चलता रहा किन्तु एक दिन वह प्रेमी सपने में नहीं आया। अत: वह जोर से उस प्रेमी से घबराहट में बोलती हुई जाग पड़ी किन्तु जब उसने अपने पास अपनी दासी को देखा तो वह घबड़ा उठी। उषा की सखी चित्रलेखा ने उससे पूछा कि तुम किसको बुला रही थी तो उषा ने उसे सारी बातें बता दीं। उषा के स्वप्न-प्रेमी के विषय में सुनकर चित्रलेखा ने गन्धर्वों, अन्य दैवी पुरुषों एवं विभिन्न वृष्णिवंशियों के चित्र खींच कर अपनी सखी के कष्ट को कम करना चाहा। उसने उषा से कहा कि वह सपने में देखे गये पुरुष को चुन ले तो उषा ने अनिरुद्ध के चित्र की ओर संकेत किया। चित्रलेखा में योगशक्ति थी अत: वह तुरन्त जान गई कि उसकी सखी ने जिस युवक की ओर इंगित किया है, वह कृष्ण का पौत्र अनिरुद्ध है। तब उषा अपनी योगशक्ति द्वारा आकाश-मार्ग से उड़ कर द्वारका गई, अनिरुद्ध को खोज निकाला और उसे बाणासुर की राजधानी शोणितपुर लेकर लौट आई। उसने उसे लाकर उषा को सौंप दिया।

इच्छित पुरुष को पाकर उषा अपने उस निजी कक्ष में जिसमें कोई व्यक्ति नहीं जा सकता था, स्नेहपूर्वक उसकी सेवा करने लगी। कुछ काल बाद अन्त:पुर की रक्षिकाओं को उषा के शरीर में संभोग के चिह्न दिखे तो वे दौडक़र बाणासुर को बताने गईं। वह अत्यधिक विचलित हो उठा और अनेक अंगरक्षकों समेत अपनी पुत्री के कक्ष में भागा हुआ पहुँचा। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने अनिरुद्ध को वहाँ देखा। जब अंगरक्षकों ने उस पर आक्रमण किया, तो उसने अपनी गदा से कइयों का काम तमाम कर दिया। फिर तो शक्तिशाली बाणासुर ने उसे अपने नागपाश से बाँध लिया। उषा बेचारी शोक से विह्वल हो उठी।

 
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