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श्लोक |
मोहयित्वा तु गिरिशं जृम्भणास्त्रेण जृम्भितम् ।
बाणस्य पृतनां शौरिर्जघानासिगदेषुभि: ॥ १४ ॥ |
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शब्दार्थ |
मोहयित्वा—मोहित करके; तु—तब; गिरिशम्—शिवजी को; जृम्भण-अस्त्रेण—जँभाई लाने वाले अस्त्र से; जृम्भितम्—जँभाई लाते हुए; बाणस्य—बाण की; पृतनाम्—सेना को; शौरि:—कृष्ण; जघान—मारने लगे; असि—तलवार; गदा—गदा; इषुभि:—तथा बाणों से ।. |
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अनुवाद |
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जृम्भणास्त्र द्वारा जम्भाई लिवाकर शिवजी को मोहित कर देने के बाद कृष्ण बाणासुर की सेना को अपनी तलवार, गदा तथा बाणों से मारने लगे। |
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