विद्राविते भूतगणे ज्वरस्तु त्रिशिरास्त्रीपात् ।
अभ्यधावत दाशार्हं दहन्निव दिशो दश ॥ २२ ॥
शब्दार्थ
विद्राविते—भगा दिये जाने पर; भूत-गणे—शिवजी के सारे अनुचरों के; ज्वर:—शिवजी की सेवा करने वाला साक्षात् ज्वर; तु—लेकिन; त्रि—तीन; शिरा:—सिर वाले; त्रि—तीन; पात्—पाँव वाले; अभ्यधावत—की ओर दौड़ा; दाशार्हम्—भगवान् कृष्ण को; दहन्—जलाते हुए; इव—सदृश; दिश:—दिशाएँ; दश—दसों ।.
अनुवाद
जब शिवजी के अनुचर भगा दिये गये, तो तीन सिर तथा तीन पैर वाला शिवज्वर कृष्ण पर आक्रमण करने के लिए आगे लपका। ज्योंही शिवज्वर निकट पहुँचा तो ऐसा लगा कि वह दसों दिशाओं की सारी वस्तुओं को जला देगा।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ने शिवज्वर का निम्नलिखित वर्णन उद्धृत किया है— ज्वरस्त्रिपदस्त्रिशिरा: षड्भुजो नवलोचन:।
भस्मप्रहरणो रौद्र: कालान्तकयमोपम: ॥
“भयानक शिवज्वर के तीन पाँव, तीन सिर, छह भुजाएँ तथा नौ आँखें थीं। राख की वर्षा करते हुए वह जैसे ब्रह्माण्ड के संहार के समय यमराज सा प्रतीत हो रहा था।”
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥