माहेश्वर:—शिव का (ज्वर अस्त्र); समाक्रन्दन्—चिल्लाता हुआ; वैष्णवेन—वैष्णवज्वर के; बल—बल से; अर्दित:—पीडि़त; अलब्ध्वा—न पाकर; अभयम्—निडरता; अन्यत्र—और कहीं; भीत:—डरा हुआ; माहेश्वर: ज्वर:—शिव ज्वर; शरण—शरण के लिए; अर्थी—लालायित; हृषीकेशम्—हर एक की इन्द्रियों के स्वामी, भगवान् कृष्ण की; तुष्टाव—उसने प्रशंसा की; प्रयत- अञ्जलि:—हाथ जोडक़र ।.
अनुवाद
विष्णुज्वर के बल से परास्त शिवज्वर पीड़ा से चिल्ला उठा। किन्तु कहीं आश्रय न पाकर भयभीत हुआ शिवज्वर इन्द्रियों के स्वामी कृष्ण के पास शरण पाने की आशा से आया। इस तरह वह अपने हाथ जोडक़र उनकी प्रशंसा करने लगा।
तात्पर्य
जैसाकि श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ने इंगित किया है, यह महत्त्वपूर्ण है कि
शिवज्वर अपने स्वामी शिव को छोडक़र सीधे भगवान् कृष्ण की शरण लेने गया।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥