ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥ “न तो मैं किसी से द्वेष करता हूँ न मैं किसी का पक्षपात करता हूँ। मैं सबों के प्रति समभाव रखता हूँ। किन्तु जो भी भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता है, वह मेरा मित्र है—मुझमें है—और मैं भी उसका मित्र हूँ।” देवता तथा साधु पुरुष (देवान् साधून् ) भगवान् की इच्छा पूरी करने के लिए समर्पित रहते हैं। देवता प्रशासक की तरह कार्य करते हैं और साधुजन अपने उपदेशों तथा आदर्शों से आत्म-साक्षात्कार तथा पवित्रता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। किन्तु जो लोग प्राकृतिक अर्थात् ईश्वर के नियमों का उल्लंघन करते हैं और अन्यों के साथ हिंसा करके जीते हैं, वे भगवान् द्वारा विविध लीला-अवतारों में विनष्ट कर दिये जाते हैं। जैसाकि भगवान् भगवद्गीता (४.११) में कहते हैं—ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्य-हम्। वे निष्पक्ष हैं किन्तु जीवों के कर्मों के प्रति समुचित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। |