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श्लोक |
ततो बाहुसहस्रेण नानायुधधरोऽसुर: ।
मुमोच परमक्रुद्धो बाणांश्चक्रायुधे नृप ॥ ३१ ॥ |
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शब्दार्थ |
तत:—तत्पश्चात; बाहु—अपनी भुजाओं से; सहस्रेण—एक हजार; नाना—अनेक; आयुध—हथियार; धर:—धारण किये; असुर:—असुर ने; मुमोच—छोड़ा; परम—अत्यधिक; क्रुद्ध:—क्रुद्ध; बाणान्—बाणों को; चक्र-आयुधे—चक्रधारी पर; नृप—हे राजा (परीक्षित) ।. |
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अनुवाद |
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हे राजन्, अपने एक हजार हाथों में असंख्य हथियार लिए उस अतीव क्रुद्ध असुर ने चक्रधारी भगवान् कृष्ण पर अनेक बाण छोड़े। |
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