चूँकि भगवान् शुद्ध हैं, तो फिर कुछ लोग कृष्ण के रूप तथा कार्यों को अशुद्ध रूप में क्यों अनुभव करते हैं? आचार्य जीव गोस्वामी बतलाते हैं कि जिनके स्वयं के हृदय अशुद्ध हैं, वे शुद्ध भगवान् को नहीं समझ सकते। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती अर्जुन के प्रति भगवान् के ही उपदेश को श्री हरिवंश से उद्धृत करते हैं— तत्परं परमं ब्रह्म सर्वं विभजते जगत्। ममैव तद्धनं तेजो ज्ञातुमर्हसि भारत ॥ “उस (समग्र प्रकृति) से श्रेष्ठ परब्रह्म है, जिससे इस सम्पूर्ण सृष्टि का विस्तार होता है। हे भारत! तुम्हें जान लेना चाहिए कि परब्रह्म मेरे केन्द्रीभूत तेज से युक्त है।” इस प्रकार शिवजी अपने भक्त को बचाने के लिए अपने नित्य आराध्य प्रभु भगवान् कृष्ण की स्तुति करते हैं। भगवान् की मोहिनी शक्ति ने शिवजी को कृष्ण से भिडऩे के लिए प्रेरित किया था किन्तु अब यह युद्ध समाप्त हो चुका था और अपने भक्त को बचाने के लिए शिवजी ये सुन्दर स्तुतियाँ करते हैं। |