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श्लोक |
अहं ब्रह्माथ विबुधा मुनयश्चामलाशया: ।
सर्वात्मना प्रपन्नास्त्वामात्मानं प्रेष्ठमीश्वरम् ॥ ४३ ॥ |
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शब्दार्थ |
अहम्—मैं; ब्रह्मा—ब्रह्मा; अथ—तथा; विबुधा:—देवतागण; मुनय:—मुनिगण; च—और; अमल—शुद्ध; आशया:—चेतना वाले; सर्व-आत्मना—हार्दिक रूप से; प्रपन्ना:—शरणागत; त्वाम्—तुमको; आत्मानम्—आत्मा; प्रेष्ठम्—प्रियतम; ईश्वरम्—प्रभु को ।. |
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अनुवाद |
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मैंने, ब्रह्मा ने, अन्य देवता तथा शुद्ध मन वाले मुनिगण—सभी लोगों ने पूर्ण मनोयोग से आपकी शरण ग्रहण की है। आप हमारे प्रियतम आत्मा तथा प्रभु हैं। |
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