य एवं कृष्णविजयं शङ्करेण च संयुगम् ।
संस्मरेत् प्रातरुत्थाय न तस्य स्यात् पराजय: ॥ ५३ ॥
शब्दार्थ
य:—जो भी; एवम्—इस प्रकार; कृष्ण-विजयम्—कृष्ण की विजय को; शङ्करेण—शंकर के साथ; च—तथा; संयुगम्— युद्ध को; संस्मरेत्—स्मरण करता है; प्रात:—सुबह; उत्थाय—जाग कर; न—नहीं; तस्य—उसकी; स्यात्—होगी; पराजय:— हार ।.
अनुवाद
जो भी व्यक्ति प्रात:काल उठकर शिव के साथ युद्ध में कृष्ण की विजय का स्मरण करता है उसे कभी भी पराजय का अनुभव नहीं करना होगा।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के अन्तर्गत “बाणासुर और भगवान् कृष्ण का युद्ध” नामक तिरसठवें अध्याय के श्रील भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के विनीत सेवकों द्वारा रचित तात्पर्य पूर्ण हुए।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥