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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  10.64.1 
श्रीबादरायणिरुवाच
एकदोपवनं राजन् जग्मुर्यदुकुमारका: ।
विहर्तुं साम्बप्रद्युम्नचारुभानुगदादय: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-बादरायणि:—बादरायण के पुत्र (शुकदेव गोस्वामी) ने; उवाच—कहा; एकदा—एक दिन; उपवनम्—छोटे से जंगल में; राजन्—हे राजा (परीक्षित); जग्मु:—गये; यदु-कुमारका:—यदुवंश के बालक; विहर्तुम्—खेलने के लिए; साम्ब-प्रद्युम्न- चारु-भानु-गद-आदय:—साम्ब, प्रद्युम्न, चारु, भानु, गद तथा अन्य ।.
 
अनुवाद
 
 श्री बादरायणि ने कहा : हे राजा, एक दिन साम्ब, प्रद्युम्न, चारु, भानु, गद तथा यदुवंश के अन्य बालक खेलने के लिए एक छोटे से जंगल में गये।
 
तात्पर्य
 श्रील श्रीधर स्वामी कहते हैं कि इस अध्याय में वर्णित राजा नृग की कथा समस्त दम्भी राजाओं को गम्भीर उपदेश देने के लिए है। इस कथा के माध्यम से श्रीकृष्ण ने अपने ही परिवार के सदस्यों को गम्भीर उपदेश देना चाहा जो अपने ऐश्वर्य से गर्वित हो उठे थे।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥